तेरी आँख से
छलका वो
मोती, दामन
में मेरे
गर आता !
क्या कोई क़यामत
हो जाती,
जो आँचल
मेरा भर
जाता !!
किस्मत की क्यों
मैं बात
करूँ, मुमक़िन
है ये
भी ऐ
हमदम !
जो साथ न
तेरा नसीब
होता, ये
चाँद भी
"तन्हा"घर जाता
!!
भूलूँ कैसे माहताब की
बातें, तारों
की राते,
शबनम का
साथ !
कोई ग़िला तो
ऐसा रख
जाता, कोई
काम तो
ऐसा कर
जाता !!
अच्छा है जो
तूने हरदम,
किया रुसवा
मोहब्बत को
!
वर्ना देख मेरा
चाक – गिरेबाँ,
इल्ज़ाम ये
तेरे सर
जाता !!
हाय !मेरे अहबाब
तुमने , कैसी
नाफ़रमानी कर
डाली !
कहते हैं अब
रकीबों से
वो, अच्छा
है "तन्हा"मर जाता
!!
-
" तन्हा
" चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
kya khoob, zara iska saal bhi darj kar den!
ReplyDeletePlease Write Some Thing...... !!!
ReplyDeleteji likha hai kuch...
Deleteitni lajavab rachnaon ke sath apna rachna-kaal bhi dalen to hamen pata chalega ki yah shayar kis zamaane se ek UMDA shayar hai!!
ReplyDeleteबहुत कुछ ऐसा है जो यहाँ - वहाँ बिखरा पड़ा है ! बस अभी तो सब समेट रहे हैं !! आगे से नई क़लम पे तारीख़ ज़रूर दर्ज़ कर देंगे !!!
ReplyDelete