इक बात पुरानी याद आई !
लो फिर तुम्हारी याद आई !!
शबनम की भीगी रातों में !
पूनम सा था चाँद खिला !!
बाँहो में थी सिमटी चाँदनी !
और तपिश तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!
कागज के सादे पन्नों में !
जब- जब मैंने रंग भरे !!
खुशबू सा महका तन -मन !
और सूरत तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!
बसन्ती मौसम है कहता !
यादों के हर मौसम में !!
छाये बहार फूलों की !
जब बयार तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!
- "तन्हा "चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
No comments:
Post a Comment