Sunday 10 November 2013



इक बात पुरानी याद आई !
लो फिर तुम्हारी याद आई !!

शबनम की भीगी रातों में !
पूनम सा था चाँद खिला !!
बाँहो में थी सिमटी चाँदनी !
और तपिश तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!

कागज के सादे पन्नों में !
जब- जब मैंने रंग भरे !!
खुशबू सा महका तन -मन !
और सूरत तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!

बसन्ती मौसम है कहता !
यादों के हर मौसम में !!
छाये बहार फूलों की !
जब बयार तुम्हारी पाई !!
लो फिर तुम्हारी याद आई !!

                 - "तन्हा "चारू !!

सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज कुमार खरे  " तन्हा " चारू !!

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