जब भी ;
जीवन की डगर
पर ,
डालता हूँ रुक
कर नज़र
!
इस बियावान ;
रास्ते पर
आता है
,
एक सूखा दरख्त
नज़र !!
जो; चुपचाप खड़ा
सोचता था
,
अपने जीवन की
कहानी को
!
कैसे छिटक कर
दफ्न हुआ
था ;
वो इस ज़मी
में ,
लेकिन उसकी जीने
की आस
ने ;
उसी ज़मीं में
!
जमाई थी अपनी
जड़े और
वो निकल
आया था
,
अपने खोल से
बाहर ,
खुली हवा में
,
साँस लेने के
लिये !!
मौसम के हर
सितम को
हँस कर
बर्दाश्त करते
हुये
बढ़ता रहा पल-पल वो
जीने की
आस में
!
जब उसने फैला
ली अपनी
बलिस्ठ बाँहें
तो ;
बच्चे उसके दामन
से लिपट
कर खेलने
लगे ,
गोरियों ने भी
उसकी बाँहों
का लेकर
सहारा ,
डाल के उस
पर फन्दे
था इक
झूला उतारा
!!
पथिकों ने उसके
आग़ोश में
खड़े हो
कर
किया था किस
तरह हर
मौसम गवारा
!!
बीतते वक़्त के
साथ
उसकी भुजायें छीड़
होने लगी
!
धीरे -धीरे सबकी
तरह
उसकी बाज़ुएँ भी
थकने लगी
!!
टूटने लगी थी
वो बुलंदी
उसकी
वक़्त के थपेड़ो
ने तोड़
दी कमर
उसकी !
और वो बेचारा
;
एक दरख्त
में तब्दील
हो गया
था !
जिसे अब जीने
की न
कोई आस
थी
उसके मन में
नहीं कोई
प्यास थी
!!
उसको इन्तज़ार था
तो बस
वक़्त के इक
तेज़ झोंकें
का !
जो उसे उसकी
जड़ों सहित
उखाड़ फेंके
;और
वो चूम कर
जमीं को
अपनी आशाओं और
आस का
प्राश्चित कर सके
; फिर ,
यहीं बच्चे कुल्हाड़ी
लेकर उसके
टुकड़े करेंगे ;और
किसी गरीब के
घर की
भट्टी में
जल कर
वो राख़
हो जायेगा
!
इसके बाद वो
कुछ न
कर पायेगा
; क्योंकि ,
राख़ सिर्फ राख़
होती है
;
उसमे जीवन नहीं
होता ;
विचार नहीं होता
;
आशा नहीं होती
,
और
सिर्फ इक फूँक
उसे मिट्टी
में मिला
देती है
;
और
अब दफ्न होने
के बाद
वो बाहर नहीं
आ सकता
; क्योंकि
अब वो राख़
है बीज
नहीं !!
-
" तन्हा
" चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
और वो बेचारा ;
ReplyDeleteएक दरख्त में तब्दील हो गया था ! .............
धन्यवाद अनुज जी !
Delete