क्या हुआ आज जो सर पे मेरे ताज़ नहीं है !
नहीं मुझ "तन्हा" को इसपे एतराज़
नहीं है !!
लिखता हूँ कलाम लहू-ए-ज़िगर से अपने !
मेरा फ़न तेरी दाद का मोहताज़ नहीं है !!
फितरत-ऐ-शायर की नहीं अब फिक्र मुझे !
है फिक्र शायरे-वतन मेरा हमराज़ नहीं है
!!
आये इन्क़लाब कभी है ख्वाहिश मेरी ये !
मग़र वतन में मुझसा कोई जां-बाज़ नहीं है
!!
कैफ़-ऐ-कलाम में हो न क्यूँ बू-ए-इंकलाब !
रूह-ऐ -कलाम अब कोई मुमताज़ नहीं है !!
कल्म करते हो किसलिये ये ज़ुबान मेरी !
ज़ुंबिश तो है हांथों में जो आवाज़ नहीं है
!!
दिल में आतिश औ कफ़न कांधों पे अपने !
सरकशी का अंज़ाम अब कोई राज़ नहीं है !!
खेलता हूँ "तन्हा" खूँ औ जाँ बाज़ी
अपनी !
बता ऐ हिन्द ! क्या तुझे मुझपे नाज़ नहीं है
!!
-
" तन्हा " चारू
!!
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
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