Wednesday 1 January 2014

अधूरी दास्ताँ ....... !!!!

अधूरी दास्ताँ ....... !!!!

जब ;  
सुबह का सूरज ,
बर-बस
अपने आगमन की
दस्तक़ दे रहा होगा !
अपनी लालिमा को , अपने
दोनों हाथों से समेट कर
मेरे लजाये चेहरे पर
मलने की पुरकोश
कोशिश कर रहा होगा !
जब ;
उसकी हल्की , गुनगुनी गर्मीं
तुम्हारे हाथों के स्पन्दन सी
मेरे माथे पर
मेरे चेहरे पर
मेरे होठों पर
इक मधुर चुम्बन सी
अंकित हो रही होगी !
मैं ;
तुम्हारे ख्यालों में
डूबती - उतरती
उन विचारों की सुनहली नदी में
अपने जीवन की
कश्ती को
तुम्हारी हथेली की
चन्द रेखाओं में
उतार कर
तुम्हारे विश्वास को अपना
मांझी व पतवार ; बना कर !
मैं निश्चिन्त हो जाऊँगी !
फिर ;
तुम्हारे संकल्प के
सीने में अपना ; मुख छिपा कर !
अपने नर्म व नाज़ुक
जज्बातों से तुम्हे
सहला कर !
धीरे से ;
तुझे उस नींद से
उठा कर
अपनी अधूरी दास्ताँ सुनाऊँगी !
और ख़ुद ;
तुम्हारे आग़ोश में
समा कर !
बेफ़िक्र हो
खो जाऊँगी ; सो जाऊँगी !!

n      " तन्हा " चारू !!



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