इक पुरानी डायरी में दफ्न 21-22 साल पहले (
1992 -93 = ज़म्मू ) में लिखी गई
एक कविता ………
बोलो न ; कब आओगे ?
जब ;
सुरमई शाम , अपने सुर्ख व रेशमी , आँचल पर !
दूर झिलमिलाते , सितारों को , टाँक रही होगी !
जब ;
शीतल , मन्द ,
पागल पवन पुरवाई ,
उस आँचल को --
छू कर , हिला कर ,
लहरा कर , गिरा कर
सारे जहाँ को ;
मद मस्त बना रही होगी !
तब ;
तुम आओगे न ??? बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
तब - जब ;
ढल चुकी रात , और अन्धियारी ,
होती जा रही होगी !
चूर - चूर हो कर ; बिखरे सपनों की
एक और ; गहरी सी पर्त ,
उस पर छा रही होगी !
तब - जब ;
उस टूटन की चुभन ,
यक़ीनन , मेरे चेहरे पर ,
आ रही होगी !
मेरे ;
टीसते - रिसते जख्मों पर ,
हल्की सी पड़ी पपड़ी
को भी दरका रही होगी !
तब - जब ;
तुम्हारी याद , तुम्हारा प्यार ;
मलहम सा बन कर
उस नासूर को अपने
दामन में छिपा कर
उस अँधेरे में आशा की ;
चन्द्र किरण दिखा कर !
हर पल - हर छड़ ;
मुझे ,
उस भँवर से निकाल कर
मेरा आधार बन रहा होगा !
मेरा सम्बल बन चुका होगा !!
तब ;
तुम आओगे न ???
बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
या शायद तब ;
हाँ तब ;
जब ,
एक और सुबह मेरा ; इन्तज़ार कर रही होगी !
जब ;
हर घड़ी एक नया ; इसरार कर रही होगी !
जब ;
मुझ पर बीती हर बात मुझे ; बेक़रार कर रही होगी !
तब ; हाँ तब ;
उस सुर्ख व रेशमी ; आँचल को ,
उस दहकती सी चूड़ियों कि ; छनछनाहट को ,
उस काली पड़ चुकी ; मेहँदी को ,
मुझे ;
पहनाने ; सुनने ; देखने !
तुम तो आओगे न ?
मेरे आँखों से गिरते ; हर मोती को ,
मेरे डगमगाते से ; हर क़दम को ,
मेरे पीछे रह गई ; हर याद को ,
तुम ;
समेटने ; सम्हालने ; बिसराने !
तुम तो आओगे न ?
बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
अब तुम ; कब आओगे ????
- " तन्हा " चारू !!
1992 - 93 ( ज़म्मू )
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज कुमार खरे "
तन्हा " चारू !!-
No comments:
Post a Comment