कैसा तीर फिर मेरे इस ज़िगर के पार गया !
दर्द उठा अश्क बहे या'नी जाँ का आज़ार गया !!
कल्म किया क्यूँ सर मेरा इसका अफ़सोस नहीं
!
हाय ! मेरा वो नन्हा दिल मसला कई बार गया
!!
बदसलूकी आज़माने उसकी बज्म ओ महफ़िल में !
जो गया इक बार गया मैं वहाँ हर बार गया
!!
तंज कसे तेग़ खींचा सलीब पे "तन्हा
"झूल गया !
देखो किस-किस ज़ानिब मैं अपनी जां वार गया
!!
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" तन्हा " चारू !!
06-02-1997
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
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