ज़िंदगी फिर आज ख़ुद को दोहराती है !
मेरी ज़बीं पर इमां का घर बनाती है !!
तेरे एहसास को खुशबू सा सहेजा था !
हवायें रोज़ जिसको बिख़ेर जाती हैं !!
किस क़दर है तुझे प्यार मुझसे "तन्हा"!
हथेलियों की हिना याद तो दिलाती है !!
तेरे माथे की बिंदिया ओ कंगना पायल !
मेरा सुकूँ भी हया के साथ लिये जाती है
!!
जिंदगी ! तेरे झूठे वादे पर ऐतबार कर !
मौत भी मुझसे मिलना टाल जाती है !!
तुम भी हो किस मिट्टी के साज़ "तन्हा"!
जिन्दगी न जिस पे कभी गुनगुनाती है !!
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" तन्हा " चारू !!
02-01-2014
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
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