तूफाँ से आती है तपिश-ए-आब की झलक !
देती है ख्वाहिश पेंच-ओ--ताब की झलक !!
उलट दे सऱे - राह वो नक़ाब ऐ सबा !
दिखला दे फिर मुझे माहताब की झलक !!
फ़िर देखूँगा मोजिज़ तेरे इस कमाल को !
देखो अभी रंगीनिये -शबाब की झलक !!
पेशानी पे होता सुर्ख वो दाग़ -ए -बोसा मेरा
!
किस क़दर है ज़ाहिर तेरे इताब की झलक !!
खुशग़वार फ़िज़ा धुंधलकी शाम शबे स्याह !
हर पहर है तेरे इज्तिराब की झलक !!
अब्र उठा ;जाम उठा ; मस्त हो ;सलाम कर !
हो नुमायां बज़्म में आलमताब की झलक !!
कैफ़-ए-कलाम-ए-"तन्हा" है मर्हलों
के पार !
आती है इसमें बू-ए -इन्क़िलाब की झलक !!
- " तन्हा
" चारू !!
08-02-1997
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
तपिश = गर्मी ; आकुलता ;
बेक़रारी
आब =
पानी
पेंच =
उलझाव ; घुमाव
ताब = ताप,
शक्ति,
धीरज,
क्रोध
माहताब =
चाँद
मोजिज़ =
चमत्कार दिखाने वाला ; जादूगर ;
खुदा
रंगीनिये–शबाब = हुस्न ; सौन्दर्य
पेशानी =
माथा ; ललाट
दाग़ =
निशान, घाव का चिन्ह, कलंक, दोष, विपदा,
हानि
बोसा =
चुम्बन
इताब = क्रोध, अप्रसन्नता,
डाँट,
दोष
लगाना
इज़्तिराब = अशान्ति, चिन्ता, घबराहट,
बेचैनी
बज़्म
= सभा, टोली (महफ़िल )
आलमताब = सबको रोशन करने वाला ; खुदा !
आलमताब = सबको रोशन करने वाला ; खुदा !
कैफ़ = आनंद ; नशा
कलाम =
रचना ; कविता
मर्हलों = गंतव्य ; आखरी स्थान
बू-ए–इन्क़िलाब= आजादी की
महक ; क्रान्ति
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