हुस्न-ए-पर्दादारी वो समझता नहीं है !
अभी दुनियादारी वो समझता नहीं है !!
है रवायत यहाँ परिंदो के पर कतरना !
तब भी पहरेदारी वो समझता नहीं है !!
जला देना ख़त उसका शग़ल ही सही !
पर मेरी लाचारी वो समझता नहीं है !!
तोडना हर दिल उसका है खेल ठहरा !
नाज़ुक रिश्तेदारी वो समझता नहीं है !!
क्या कहूँ दिल की बात ज़ुबाँ से अपनी !
अभी यह ख़ुमारी वो समझता नहीं है !!
समझाऊँ किस किस को नादानियां !
नादान की यारी वो समझता नहीं है !!
लेने दो उनको इश्क के मज़े " तन्हा
" !
अभी जिम्मेदारी वो समझता नहीं है !!
- " तन्हा " !!
27-11-2014
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